सामंतवाद का एक ही उपचार है पूंजीवाद, भारत जैसे देश में हजारों सालों से दलितों के साथ अन्याय अत्याचार होते आ रहे हैं लेकिन आर्थिक रूप से कमज़ोर दलित उन अन्याय अत्याचारों का खुल ना तो विरोध कर सके और ना ही उस अत्याचार का माकूल जवाब दे सके...कारण आर्थिक पिछड़ापन, उसके साथ साथ अशिक्षा, और बहुत सारे कारक है किन्तु वर्तमान में जिन दलितों के लिए आर्थिक तरक्की के सारे रास्ते बंद थे वो खुल चुके हैं संविधान लागू होने के बाद स्थिति और सुधरी है। तरक्की के नए नए आयाम खुले हैं नौकरी, व्यापार, कृषि, और भी अनेक तरह के आयाम। जिन दलितों को सामंतवादी और जातिवादी मानसिकता वाले लोगों ने हजारों सालों तक दबा के रखा उनका शोषण किया वो दलित अब आर्थिक तरक्की कर समंतवादियों को आइना दिखा रहे हैं पूंजीवाद के आगे सामंतवादी टिक नहीं सकते, दलितों को चहिए कि वे शिक्षा मैं निवेश करें अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दें शिक्षा से आर्थिक तरक्की के द्वार खुलने लगते हैं। दलित आर्थिक रूप से संपन्न बने और राष्ट्र में अपने आप को मजबूती से स्थापित करें, जो दलित कभी अच्छे कपड़े नहीं पहन पाए वो अच्छे कपड़े पहने साफ सफाई से रहें, अच्छा खान पान रखें, घर बनाएं, गाड़ी खरीदें, हवाई जहाज में घूमें, वो सारे काम करें जो हजारों वर्षों से नहीं कर पा रहे थे। अपने आप को कभी नीचा नहीं समझें, दलित राष्ट्र प्रहरी रहे हैं इसके संबंध में ऐतिहासिक वर्णन खूब मिलता है, कैसे भी करके आर्थिक संपन्नता जरूरी है तभी समंतवाद को चुनौती दी जा सकती है।
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