पूरे भारत में मनाया जाता गणेश उत्सव इसके पीछे है विशिष्ट वजह,
जब भारत अंग्रेजों की कॉलोनी थी तब भारत में अंग्रेजों के नियम बहुत ही कड़े हुआ करते थे, सार्वजनिक रूप से कोई भी राजनैतिक गतिविधि सरकार की अनुमति के बिना नहीं हो पाती थी और ना ही सार्वजनिक रूप से लोगों को इक्कठा होने दिया जाता था।भारतीय परेशान थे और वे भारत को स्वतंत्र भी कराना चाहते थे किंतु अंग्रेजी सरकार की कठोर नीतियों के कारण भारत के द्वारा किए जा रहे आंदोलनों को कठोरता के साथ दबा दिया जाता था इसी के चलते भारत में हिंसात्मक रूप से कोई बड़ा आंदोलन सफल नहीं हो पा रहा था इसलिए भारतीयों ने अहिंसा का मार्ग अपनाया और भारतीय सड़कों पर उतरने लगे किंतु वहां पर भी लोगों को इकट्ठा नहीं होने दिया जा रहा था इसलिए बाल गंगाधर तिलक ने सन 1893 में गणेश चतुर्थी के दिन महाराष्ट्र में गणेश उत्सव के रूप में मनाना शुरू कर दिया धार्मिक उत्सव के रूप में लोगों की भीड़ इक्कठी होने लगी और नेता एवं उनके सहयोगी आसानी से सरकार के विरुद्ध योजनाएं बनाने लगे, अब अंग्रेज, लोगों की भीड़ इकट्ठा होने की वजह को धार्मिक होने से नहीं रोक सके एवं लोग आसानी से अपनी मातृभाषा में विरुद्ध अंग्रेजों के विरुद्ध योजनाएं तैयार करने लगे। किंतु अंग्रेजों को अब इसकी भनक लगने लगी थी की महाराष्ट्र में उनके विरुद्ध साजिशें चल रहीं हैं।
ग्यारहवें दिन जब बाल गंगाधर तिलक ने गणेश जी को किसी वाहन पर बिठाकर पूरे मुम्बई शहर की सड़कों पर घुमाना शुरू कर दिया लोगों की गणेश जी को देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी तभी किसी निचली जाति के व्यक्ति ने गणेश की प्रतिमा को अपने हाथों से छू लिया जब यह बात ब्राह्मणों को पता लगी तो उन्होंने गणेश की प्रतिमा को वही की एक नदी में खंडित मानकर डुबो दिया इस प्रकार संपूर्ण भारत में गणेश उत्सव मनाया जाने लगा और ग्यारहवें दिन किसी जल स्रोत में गणेश विसर्जन किया जाने लगा।
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